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गप्पू की छुट्टियाँ ख़त्म हो गयी है. 8 साल का गप्पू हॉस्टल जाने की तैयारी में बेमन से लगा हुआ है.
माँ – बेटा गप्पू…सारी पैकिंग हो गयी.
गप्पू (ठुनकते हुए) – माँ…मै हॉस्टल नहीं जाऊंगा…मुझे वहाँ अच्छा नहीं लगता है.
माँ – बेटा ….हॉस्टल नहीं जाओगे तो तुम्हारी पढाई कैसे होगी…तुम्हे तो पता है की तुम्हारा स्कूल यहाँ से कितनी दूर है.
गप्पू – लेकिन माँ…यहाँ हमारे गाँव में भी तो स्कूल है…मै यहाँ भी तो पढ़ सकता हूँ .
माँ – नहीं बेटा …..ये सरकारी स्कूल है, यहाँ अच्छी पढाई नहीं होती है…
हमने तुम्हारा एडमिशन बहुत मुश्किल से शहर के स्कूल में कराया है…तुम वहाँ खूब मन लगाकर पढाई करना…ठीक है ….
गप्पू – पर माँ …..दीपू तो गाँव के स्कूल में ही पढता है….मैंने देखा है…उसकी माँ रोज टिफिन में उसे पराठे बनाकर देती है…दीपू तो बड़े मजे से अपनी टिफिन खाता है…
मुझे वहाँ हॉस्टल का खाना बिलकुल अच्छा नहीं लगता है….
माँ – बेटा….सोना जितना आग में तपता है, वो उतना ही निखर कर सामने आता है…
तुम अच्छे से पढाई कर के एक दिन डॉक्टर – इंजिनियर बनोगे और दीपू की तो सारी जिंदगी इसी गाँव में निकल जाएगी………..
बेटा …..तुम्हे एक कामयाब आदमी बनना है और अपने माँ-बाप का नाम रोशन करना है…
गप्पू – पर माँ…मुझे गाँव के लोग ही अच्छे लगते है……और मुझे यही रहना पसंद है….
माँ – गप्पू…..बहस नहीं करते…….चलो अब जल्दी से तैयार हो जाओ.
गप्पू की समझ में सारी बात आ जाती है और वो खूब मन लगाकर पढाई करता है..और अच्छे नम्बरों से बोर्ड का एग्जाम पास कर जाता है….
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गप्पू – माँ…माँ…अब मै आगे की पढाई गाँव के कॉलेज से ही करूँगा…
माँ – तुम्हारा…दिमाग तो नहीं ख़राब हो गया है…इतने अछे नम्बरों से पास हुए हो और गाँव के कॉलेज में पढोगे…
अगर इसी कॉलेज में पढाना होता तो हम इतने खर्चे कर के शहर के स्कूल में क्यों पढ़ाते ?
गप्पू – पर माँ….मुझे शहर में अच्छा नहीं लगता है…..वहा मुझे बहुत अकेलापन लगता है….मै यहाँ तुम लोगो के साथ रहना चाहता हूँ…
माँ – ऐसा नहीं बोलते बेटा….एक अच्छे भविष्य के लिए हमें अपना वर्तमान तो त्याग करना ही पड़ता है….
जीवन में कुछ भी हासिल करने के लिए हमें उसकी कीमत चुकानी पड़ती है……
अगर आज तुम कमजोर पड़ गए तो तुम्हे भी हमारी तरह अपनी सारी जिंदगी इसी गाँव में बितानी पड़ेगी….
दीपू को नहीं देखते हो …कैसे सारा दिन मजदूर की तरह खेतो में काम करता रहता है…क्या तुम ऐसी ही जिंदगी चाहते हो ?
गप्पू की समझ में बात आ जाती है….और वो आगे की पढाई के लिए शहर निकल पड़ता है….
इस बार भी खूब अच्छे नम्बरों से पास होता है और उसे एक अच्छी सी नौकरी मिल जाती है…
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गप्पू – माँ..माँ… मेरी नौकरी लग गयी….तुम्हारी मेहनत सफल हुई माँ…..मै अफसर बन गया….
कम्पनी की तरफ से मुझे फ्लैट, गाड़ी सब कुछ मिला है…..पगार भी अच्छी है….
माँ – शाबाश बेटा … आखिर तुम्हारी मेहनत रंग ले ही आई…तुमने हमारे सपनो को सच कर दिखाया.
बेटा ..अब देखना गाँव में और रिश्तेदारों में हमारी कैसी धाक होती है..
लोग कैसे हमारी इज्ज़त करते हैं.
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1 साल बाद ……
माँ (फोन पर) – गप्पू बेटा….. एक खुशखबरी है…
गप्पू – कैसी खुशखबरी माँ…..
माँ – तुम्हे वो बीना आंटी याद् है न…..वो आई थी अपनी बेटी का रिश्ता लेकर…..
लड़की अच्छी है.. मैंने देखा है उसे…..और हाँ……तुम्हे भी बहुत पसंद आएगी वो…..
तुम्हे घर का बना खाना पसंद है न……..वो खाना बहुत अच्छा बनाती है……
तुम कहा करते थे न की तुम्हे गाँव के लोग ही पसंद है तो…उसका सारा बचपन गाँव में ही बिता है….
घर के सारे काम-काज में एकदम निपुण है वो ………. उन्होंने फोटो भी दिया है अपनी बेटी का…..
तुम देखना चाहोगे बेटा …….
गप्पू (थोडा हकलाते हुए) – वो माँ…मै भी काफी दिनों से आपको एक बात बतलाना चाह रहा था….
माँ – हा…बोलो बेटा …..
गप्पू – माँ ….. एक लड़की है..हम दोनों एक दुसरे को पसंद करते हैं…
और मै उस से शादी भी करने वाला हूँ..
यह सुनकर माँ भोचक्की सी रह जाती है…उसे समझ नहीं आता है की वो क्या बोले…
फिर भी खुद को सँभालते हुए वह बोलती है – ये तुम क्या कह रह रहे हो बेटा…
तुमने शादी का फैसला ले लिया और हमें बताना जरुरी भी नहीं समझा..
गप्पू – वो माँ…मै आपलोगों से बात करने ही वाला था…लेकिन मौका नहीं मिल रहा था…
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माँ – कौन है वो लड़की….किसकी बेटी है….बिरादरी क्या है…
कुछ मालूम भी किया है तुमने….
गप्पू – ये क्या बच्चो की तरह की बाते कर रही हो माँ….
यहाँ कोई बिरादरी – विरादरी नहीं देखता है…
और मैंने पूछा भी नहीं है…
वैसे वो इसी शहर की रहने वाली है और प्राइवेट जॉब करती है.
उसके पापा रीटायर क्लर्क हैं.
माँ – तुम्हारा दिमाग तो नहीं ख़राब हो गया है…
तुम शहर की लड़की से शादी करोगे और वो भी एक जॉब वाली लड़की से.
भूल गए जब तुम कहा करते थे की तुम्हे शहर के लोग पसंद नहीं है.
मैंने उसी वक़्त सोच लिया था की तुम्हारी शादी गाँव की ही किसी लड़की से करुँगी ताकि तुम्हारी बचपन की सारी शिकायतें दूर हो जाये.
शहर की चकाचौंध में सारा कुछ भूल गए क्या…
क्या यही दिन देखने के लिए हमने तुम्हे महंगे स्कूल में और शहर के कॉलेज में पढाया था ….
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गप्पू – कुछ भुला नहीं हूँ मै. हाँ…
वक़्त के साथ मेरी पसंद जरुर बदल गयी है…
और फिर क्यों करू मै ऐसी लड़की से शादी जिसे मै जानता तक नहीं…
जिसका सारा बचपन गाँव में ही बिता हो…जो शहर में मेरे साथ एडजस्ट नहीं हो सकती…
जिसके और मेरे लाइफस्टाइल में कुछ भी कॉमन नहीं है…
तना पढ़ा लिखा होने के बावजूद भला मै इस तरह का बेवकूफी भरा डिसिजन कैसे ले सकता हूँ….
माँ – बेवकूफी भरा डिसिजन…बहुत अछे बेटे….
आज मेरी बाते तुम्हे बेवकूफी भरी लगने लगी…..
कुछ भी बोल रही हूँ तुम्हारे भले के लिए ही बोल रही हूँ….
मै भले ही तुम्हारे जितना पढ़ी – लिखी नहीं हूँ, लेकिन मैंने दुनिया तुमसे ज्यादा देखी है बेटा…..
जिस लड़की से तुम शादी करना चाहते हो…उसके साथ चार दिन भी नहीं निभा पाओगे….
जो लड़की खुद जॉब करती है, वो घर क्या संभालेगी और खाना क्या बनाएगी….
पता नहीं खाना बनाना आता भी है या नहीं उसे…देख लेना बेटा…
बीवी के हाथ की बनी दो रोटियां खाने के लिए तरस जाओगे…
गप्पू – क्या फर्क पड़ता है…..
पहले माँ के हाथ की बनी रोटियों के लिए तरसता था…..
अब बीवी के हाथ की बनी रोटियों के तरसा करूँगा……
अब तो आदत सी हो गयी है……
(गप्पू के दर्द भरी आवाज़ को साफ साफ महसूस किया जा सकता था).
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माँ – लेकिन बेटा …जरा सोचो तो…
शादी के बाद सुबह – सुबह तुम दोनों अपने अपने ऑफिस निकल जाओगे…
सारा दिन ऑफिस में रहोगे….
फिर शाम में जल्दी जल्दी घर आना..
घर के काम को लेकर आपस में झिक झिक करना……
ऐसे में कैसे कटेगी सारी जिंदगी…..
तुम दोनों साथ रहोगे फिर भी अकेलापन तुम्हे खाने को दौड़ेगा…
गप्पू – तुम उसकी चिंता मत करो माँ….
अकेले रहने की तुमने बहोत प्रैक्टिस करायी है……
अब तो अकेलापन ही अच्छा लगता है…..
बल्कि सारा दिन अगर कोई साथ हो…कोई केयर करने वाला हो…तो इस बात से चिढ होने लगती है……
अकेला होने पर एक अलग ही तरह का सुकून महसूस करता हूँ….
(ऐसा लग रहा था की जैसे गप्पू अपनी माँ पर उपहास कर रहा हो).
गप्पू एक लम्बी साँस लेता है और कहता है – माँ.. अभी मुझे कुछ काम है….
मै बाद में आपसे बात करता हूँ…..
यह कह कर वो फ़ोन रख देता है.
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इधर गप्पू की माँ बेजान मूर्ति की तरह जमीन पे बैठ जाती है….
वो सोचती है की आखिर ये सब क्या हो गया.
उसने अपनी सारी जिंदगी अपने बेटे को पढ़ाने – लिखाने और लायक बनाने में लगा दी…
उसका बेटा अपनी रुढ़िवादी सोसाइटी से बाहर निकलकर हाईयर सोसाइटी में जगह बना सके – इसके लिए उसने अपना सब कुछ झोंक दिया….
लेकिन आज उसके बेटे की यही पढाई, यही सोसाइटी, यही सोच उसे ऐसी चोट पहुँचा रही है जिसके सामने उसके बुढ़ापे का दुःख भी तिनके जैसा है.
वो सोच रही है…की कल जब उसका बेटा शहर में बिरादरी के बाहर शादी कर लेगा…तो कैसे वो समाज में लोगो का सामना करेगी…
क्या जवाब देगी वो अपनी सहेली बीना को.
कल तक जो लोग अपने बच्चो को गप्पू की मिशाल दिया करते थे….वही लोग अपने बच्चे का नाम भी गप्पू रखने से कतरायेंगे.
यही सब सोचते सोचते वो घर से बाहर निकलती है….और खेतों की तरफ चल पड़ती है….
रास्ते में उसे खेतों के पास बैठा गप्पू के बचपन का दोस्त दीपू नज़र आता है.
वो अपने माँ – बाप के साथ खेत के किनारे बैठ कर खाना खा रहा है और उसकी बीवी सभी को खाना परोस रही है….
यह सब देख कर गप्पू के माँ की आँखों से अनायास ही आंसुओं की धारा निकल पड़ती है और
मन में ढेरो सवाल लेकर वो वापस अपने घर की ओर चल पड़ती है.
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इधर….गप्पू एक अच्छी सी मुहूर्त देखकर अपने पसंद की लड़की से शादी कर लेता है और
एक नये जीवन के सफ़र की शुरुआत में निकल पड़ता है…….
मन में इस सोच के साथ…
की उसका बच्चा इस छोटे शहर में नहीं पढ़ेगा….
बल्कि उसकी पढाई किसी बड़े शहर में होगी.
और इससे पहले की एक गप्पू की कहानी ख़त्म होती….
कभी न ख़त्म होने वाले एक दुसरे गप्पू की कहानी शुरू हो चुकी थी….
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