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बेटे नालायक होते हैं………..?

it's second phase of coin
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बेटे नालायक होते हैं………..? –   वैलेंटाइन – कांटेस्ट

 

 

 

माँ – फिर कब आओगे बेटा… 

  

बेटा – अभी नहीं बता सकता… 

  

माँ – हमेशा चिंता लगी रहती है बेटा….थोड़े-थोड़े दिनों में चक्कर लगा लिया करो… 

  

बेटा – चिंता लगी रहती है….. तो क्या मैं अपनी कंपनी से ये बोलूं की वो ऑफिस मेरे घर के बगल में शिफ्ट कर दे…….छुट्टी मिलने पर ही तो आऊँगा… 

  

माँ – गुस्सा क्यों होते हो बेटा……मैं तो बस ऐसे ही बोल रही थी…… 

  

बेटा – ऐसे ही बोल रही थी का क्या मतलब हुआ……….तुम्ही चाहती थी ना की मैं नौकरी करूँ….तो अब मैं घर पे बैठ कर तो नौकरी नहीं कर सकता ना….. 

  

माँ – ये तो हर माँ-बाप की ख्वाहिश होती है बेटा की वो अपने बच्चे को किसी लायक बनाये….हमने तो हमारी जिम्मेदारी पूरी की है…. 

  

बेटा – तो मैं भी तो अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहा हूँ……..हर महीने पैसे तो मिल जाते है ना आपलोगों को…..  

  

माँ (मन ही मन कड़वा घूँट पीते हुए) – तो क्या हमारे बीच सिर्फ पैसे का रिश्ता है……बचपन से हमने तुम्हें इतने नाजों से पाला है…..हम तुम्हारे हज़ार बेतुके सवालों का जवाब कितने धैर्य और प्यार के साथ देते रहे…..खुद भूखे रहे लेकिन तुम्हारी पढ़ाई में रुकावट नहीं आने दिया…….और आज तुम्हें मेरी बातें इतनी बुरी लग रही है….मेरे दो सवालों का आराम से जवाब देने के लिये तुम्हारे पास समय नहीं है….. 

  

बेटा (गुस्से से) – अगर तुमने ये सब किया है तो कौन सा अहसान किया है…..सभी माँ-बाप ऐसा करते हैं…..तुमने ऐसा कौन सा नया काम कर दिया है की इतना इतरा रही हो…… 

  

माँ (बड़ी मुश्किल से अपने आंसूओं को पीते हुए) – शायद तुम ठीक ही कहते हो बेटा……खैर छोडो….जाने दो…..(एक लंबी साँस लेती है और माहौल हल्का करने की कोशिश में बातचीत का मुद्दा बदलते हुए कहती है) – तुम्हारी बहन की शादी भी करनी है………हो सके तो उसके लिये कुछ पैसों का इंतजाम कर लेना….. 

  

बेटा – कितने चाहिए…. 

  

माँ – करीब २ लाख का इंतजाम तो करना ही होगा…. 

  

बेटा – ठीक है……..१ साल के अंदर दे दूँगा…. 

  

माँ (उसे लगता है…. ये बात टालने की कोशिश कर रहा है) – १ साल……..हम तुम्हें ज्यादा से ज्यादा ६ महीने का समय दे सकते हैं….. 

  

बेटा (कुछ सोचते हुए) – ठीक है मैं व्यवस्था कर दूँगा…. 

  

माँ – अगर नहीं कर पाए तो…. 

  

बेटा (तैश में आ जाता है…) – तो इस घर में जो मेरा हिस्सा है वो बेच देना…. 

  

माँ (बेटे के अधिकार जताने के इस अंदाज़ को देखकर उसे भी गुस्सा आ जाता है) – कैसा हिस्सा….किस हिस्से की बात कर रहे हो….इस घर के नीव की एक-एक ईंट मैंने अपने खून-पसीने की कमाई से रखी है….तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है इस घर पर….. 

  

बेटा (आँखे लाल करते हुए) – तो फिर ठीक है……अपने पड़ोसियों से कहना  की वो ही तुम्हारे जनाजे को कंधा दें…..मुझसे कोई उम्मीद मत रखना….. 

  

माँ (आँखों से झर-झर कर आँसू बहने लगते हैं..वो चीख पड़ती है…) – ठीक है जाओ…..मुझे तुम जैसे नालायक बेटे की जरुरत भी नहीं है…….भगवान तुझ जैसा बेटा दुश्मन को भी ना दे…… 

  

बेटा अपना बैग उठाता है और चल देता है……. 

  

  

६ महीने बाद……… 

 

  

माँ को खबर मिलती है की एक एक्सीडेंट में उसके बेटे की मौत हो गयी…. 

  

  

लेकिन अब उसकी आँखों में आँसू नहीं थे…. 

  

  

उसके सिने में तो अपने नालायक बेटे के लिये सिर्फ नफरत थी …… 

  

  

उसका बेटा तो उसके लिये ६ महीना पहले ही मर चूका था….. 

  

  

उसने सच ही कहा था की वो अपनी माँ की चिता को आग नहीं देगा….. 

 

  

उसे अफ़सोस था तो इस बात का की अब उसकी बेटी की शादी कैसे होगी….. 

 

 

 

एक महीने बाद……… 

 

 

दरवाजे की बेल बजती है…… 

 

  

दरवाजा खुलता है……  

 

  

सामने पोस्टमैन  था…… 

 

  

क्या है…………..? 

 

  

आपके लिये चिट्ठी है……. 

 

  

किसने भेजा है………..? 

 

  

खुद ही देख लो………….शायद किसी इंश्योरेन्स–कंपनी का है….. 

 

  

माँ आश्चर्य से लिफाफा लेती है……..और उसे खोलती है…… 

 

  

अंदर एक चेक था………उसकी बेटी के नाम का……..२० लाख रुपये का……….. 

 

  

माँ की आँखे फटी की फटी रह जाती है……. 

 

  

साथ में इंश्योरेन्स–कंपनी का एक लेटर भी था …….जिसमे लिखा था की ये उसके बेटे के इंश्योरेन्स-क्लेम के पैसे हैं…..जो नोमिनी के नाम पे इश्यू किये गए हैं…….. 

 

  

वो बडबडाती है……लेकिन हमने  तो कोई इंश्योरेन्स नहीं कराया था……और अगर मेरे बेटे ने कराया भी था तो हमने क्लेम तो किया नहीं है……फिर ये चेक कैसे आ गया….? 

 

  

पोस्टमैन को उसके बेवकूफी पर गुस्सा आ जाता है……..तो फिर लाओ…..मै इसे वापस इंश्योरेन्स – कंपनी को भेज देता हूँ…….जब आप क्लेम करोगी….तो इंश्योरेन्स – कंपनी फिर से ये चेक भेजेगी –पोस्टमैन कहता है…… 

 

  

 

माँ को अपनी गलती का अहसास होता है………वो कहती है – ठीक है तुम जाओ……. 

 

 

वो अंदर आती है….उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था….अगर उसके बेटे ने इंश्योरेन्स कराया था तो उसे बताया कैसे नहीं…..वैसे भी ये कोई छोटी-मोटी पोलिसी तो थी नहीं………..२० लाख रुपये की थी…..प्रीमियम की रकम भी जरुर मोटी रही होगी…..इतना प्रीमियम वो भरता कहाँ से था…और अगर भरता भी था तो…..वो हर महीने घर पैसे कैसे भेजता था…….और सबसे जरुरी सवाल…. की क्लेम किसने किया……बहुत सारे सवाल थे, जिनका कोई जवाब नहीं था…….वो परेशान हो जाती है……….फिर उसे अचानक अपने बेटे के सबसे करीबी दोस्त की याद आती है…..जो उसके बेटे के साथ जॉब करता था… 

 

 

वो उसे फोन लगाती है…….माँ – बेटा…….क्या तुम्हें किसी इं

 

 

श्योरेन्स-पोलिसी की खबर है, जो मेरे बेटे ने कराई थी…..? 

 

 

दोस्त – हाँ ..माँ जी…….क्या आपको उसकी रकम मिल गयी…….. 

 

 

माँ (आश्चर्य से) – हाँ…….लेकिन तुम्हें कैसे मालूम…….. 

 

 

दोस्त – वो….दरअसल……क्लेम मैंने ही किया था….. 

 

 

माँ (राहत की साँस लेते हुए) – अच्छा…….वही तो मैंने सोचा………लेकिन तुम्हारे पास पेपर कहाँ से आये….. 

 

 

दोस्त – सारे पेपर वो मेरे पास ही छोड़ गया था……उसने कहा था….की ऐसे समय में घर वालों को ये सब करने का ख्याल नहीं होगा……लेकिन पेपर-वर्क करना जरुरी है…..इसलिए तुम ये सब पूरी करके सही समय पर क्लेम कर देना….. 

 

 

अब माँ का दिमाग ठनकता है……उसे कुछ समझ में नहीं आता है…..उसे लगता है की उसके बेटे ने सारी  तैयारियाँ तो ऐसे कर रखी थी जैसे उसे मालूम था की ये सब होने वाला है……….वो कुछ पूछने ही वाली थी की उसे आगे सुनाई देती है…… 

 

 

दोस्त – कुदरत भी कैसे-कैसे खेल खेलता है माँ जी……..बेचारा वैसे भी ६ महीने का ही मेहमान था लेकिन ईश्वर ने उससे वो समय भी छीन लिया……. 

 

माँ के सिने में हलचल सी मच गयी…..उसकी आँखों के आगे अँधेरा सा छाने लगा……उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ…..किसी अनहोनी की आशंका से उसने लड़खड़ाती आवाज में पूछा……..६ महीने का ही मेहमान था……..से क्या मतलब है तुम्हारा…….? 

 

 

दोस्त – माँ जी…..मेरा मतलब है की…….अगर ये एक्सीडेंट नहीं भी होता……तो भी वो हमारे बीच ६ महीने का ही तो मेहमान था….    

 

 

माँ की आँखों में आंसूओं का सैलाब उमड़ पड़ता है……वो चीख पड़ती है……क्या बकवास कर रहे हो तुम….आखिर तुम कहना क्या चाहते हो…..? 

 

 

अब चौंकने की बारी उसके दोस्त की थी…………वो लड़खड़ाती आवाज में बोलता है ………तो क्या आपको कुछ मालूम नहीं है,,,,,,,,, 

 

 

माँ के सब्र का पैमाना छलक जाता है………वो रोते हुए बोलती है………क्या मालूम नहीं है….मुझे सब कुछ साफ-साफ बताओ……. 

 

 

दोस्त बड़े धर्मसंकट में फँस जाता है……वो खुद को सँभालते हुए कहता है – देखिये माँ जी …….मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है……ऐसा कैसे हो सकता है….की उसने आपलोगों से ये सब कुछ छुपाया हो……….ऐसा करता हूँ……मै २ दिनों में खुद घर पे आता हूँ…….वही मै आपको सारी बाते बताता हू…..इतना कहकर वो फोन रख देता है….. 

 

 

 

हैलो-हैलो…….मुझे पूरी बात बताओ……मुझे अभी जाननी है सारी बातें…….हैलो-हैलो……पागलों की तरह वो फोन पर चिल्लाते रह जाती है……..तरह-तरह की आशंकाओं से उसका मन घिर जाता है…….फर्श पर बैठकर सिसक-सिसक कर वो किसी बच्चे की तरह रोने लगती है….. 

 

 

२ दिनों के बाद उसके बेटे का दोस्त उसके घर आता है……. 

 

 

माँ तो जैसे उसी के इंतज़ार में बैठे हुई थी……..वो उसे झकझोरते हुए पूछती है……..बताओ कौन सी बात तुमलोगों ने मुझसे छुपाई है……..क्या हुआ था मेरे बेटे को…… 

 

 

 दोस्त अपना सर ऊपर उठाता है………उसकी आँखे सूजी हुई थी……जैसे रात भर सोया नहीं हो……. 

 

 

आँखों में आँसू भरे भारी गले से वो कहता है – आपके बेटे के दिल में छेद था………………. 

 

 

धडाम……….. 

 

 

माँ के मन-मस्तिष्क में जैसे एक विस्फोट सा होता है……….किसी मूर्ति के आँखों की तरह उसकी आँखे पथरा सी जाती है…….दीवार का  सहारा लेते हुए वो जमीन पे बैठ जाती है…………उसकी आँखों के सामने अपने बेटे का चेहरा घूमने लगता है……….आँखों से आंसूओं की अविरल धारा निकल पड़ती है……..लेकिन उसकी जुबान खामोश थी………उसके होंठ जैसे आपस में सील से गए हों………चेहरे में पत्थर जैसे कठोर भाव आ गए थे…..  

 

 

 

दूसरी ओर उसका दोस्त बिलख-बिलख कर रोने लगता है…….. ऐसे में ही वो आगे बताना शुरू करता है…… 

 

 

माँ जी, उस दिन आपसे बात होने के बाद मैंने उसके रूम की तलाशी ली…….मुझे वहाँ उसकी डायरी मिली……..डायरी पढकर सारी बाते मेरी समझ में आ गयी है….,…उसने हम-सब को धोखा दिया है……पिछले डेढ़ साल से वो अकेला जहर पीता रहा…….लेकिन किसी से कुछ नहीं कहा…… 

 

 

 

डेढ़ साल पहले अचानक उसके सिने में बहुत तेज दर्द उठा था…….मैन उसे लेकर हॉस्पिटल गया…..चेक-अप के बाद डॉक्टर ने बतलाया की उसके दिल में छेद है……ये सुनकर तो हम अवाक् रह गए……हमने इलाज के बारे में पूछा………लेकिन इसके लिये……अथाह पैसों की जरुरत थी ओर साथ ही किसी के डोनेट किये हुए दिल की भी जरुरत थी……….डॉक्टर ने कहा की उसके पास ज्यादा से ज्यादा २ साल का समय है……. 

 

 

 

उस रात मेरे कंधे पर सर रखकर वो खूब रोया,,,,,,वो बार-बार एक ही बात कह रहा था……की अपने पुरे परिवार की उम्मीद सिर्फ मै ही हूँ …..मेरे माँ-बाप ने अपना सबकुछ मेरी पढ़ाई में लगा दिया…….ताकि एक दिन मैं  नौकरी कर सकूँ और उनके बुढ़ापे का सहारा बन सकूँ ………मुझे बहन की शादी भी करनी है……लेकिन अब मै क्या करूँ………. 

 

 

 

अगले दिन से वो काफी शांत-शांत रहने लगा…….उसने मुझसे कहा की मैं ये बाते किसी से ना कहूँ……क्योंकि ऐसा करने से लोग उसके साथ सहानुभूति जताएंगे…….और अगर ऐसा हुआ तो बाकि की बची-खुची जिंदगी भी वो आराम से नहीं जी पायेगा……..मुझे लगा ये सही कह रहा है………लेकिन तुम्हें अपने घर में तो ये सारी बातें बतानी होगी ना – मैंने उससे पूछा…….. 

 

 

 

हाँ …..मौका देखकर मै घर में बता दूँगा……..उसने कहा.. 

 

 

माँ जी……मैं तो यही सोच रहा था की उसने आप लोगों को ये सारी बातें बता दी होंगी…..लेकिन पट्ठे ने हम सब को अँधेरे में रखा…… 

 

 

माँ तो जैसे किसी दूसरी ही दुनिया में थी………वो टकटकी लगाकर बस शून्य को निहार रही थी……

  

 

 

दोस्त ने आगे बताया – अभी ६ महीना पहले जब वो घर से लौटा….. तो मुझे इन्स्युरेंस के पेपर दिए और उसके जाने के बाद मुझे क्या करना है…..ये बतलाया……. 

 

 

 

उसकी डायरी पढकर मुझे पता चला की पिछली बार वो आपलोगों से आखरी बार मिलने आया था…….उसने  आपसे बदतमीजी से बात की …वो इसलिए ताकि आपके दिल में उसके लिये नफरत पैदा हो जाये और जब आपलोगों को उसके ना होने की खबर मिले तो आपलोगों को ज्यादा दुःख ना हो……

  

 

 

माँ जी, आपने उसे ६ महीने के अंदर २ लाख रुपये देने के लिये कहे थे………अब तो मुझे ये भी लगने लगा है की कहीं उसने इंश्योरेंस के पैसे पाने के लिये  जान-बूझकर तो अपना एक्सीडेंट नहीं कराया…… 

 

 

 

इतना सुनते ही माँ जैसे किसी लंबी तन्द्रा से जगी और वो फिर से दहाड़े मार कर रोने लगी………अपने ही धुन में उसने बोलना शुरू किया –

 

 

तुने ठीक ही कहा था बेटा……….की तू मेरी अर्थी को कंधा नहीं देगा…….तुझे सब कुछ मालूम था……..मैं तेरी बात समझ नहीं पायी……….मैंने तुझे बददुआ दिया…..मुझे माफ़ कर दे बेटा…….तुने वादा किया था की तू ६ महीने में २ लाख रुपये दे देगा…….तुने तो जाते जाते हमारी जिंदगी की सारी उलझने दूर कर दी………मैंने तो कहा था की भगवान दुश्मन को भी तेरे जैसा बेटा ना दे………मैं तो जिंदगी भर यही दुआ करुँगी की तू हार जन्म में मेरा ही बेटा हो……….

  

उसे अपने बेटे के मरने का अफ़सोस था……लेकिन उससे कहीं ज्यादा इस बात का अफ़सोस था की एक माँ होकर भी वो कभी ये नहीं समझ पायी की उसका बेटा अपने परिवार को कितना प्यार करता है….. 

 

 

उसकी माँ मन ही मन सोच रही थी………………………

 

 

क्या सचमुच बेटे नालायक होते हैं………..?    

 

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