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पापा…. बाहर कोई आपके बारे में पूछ रहा है….

it's second phase of coin
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पापा…. बाहर कोई आपके बारे में पूछ रहा है….

 

 

 

पापा…. बाहर कोई आपके बारे में पूछ रहा है….

 

जरुर महाजन होगा……जाकर कह दो मैं घर पर नहीं हूँ…….

 

……..अंकल…….पापा तो कह रहे हैं की वो घर पर नहीं है….

 

तभी बच्चे की माँ आ जाती है ….और बात सँभालते हुए कहती है की अरे नहीं…..इसे मैंने कहा था की जाओ अंकल से कह दो की पापा अभी-अभी कहीं निकले हैं…वो घर पर नहीं हैं…

 

महाजन चला जाता है……

 

बच्चे का पिता गुस्से से बच्चे को एक थप्पड़ लगा देता है और कहता है…..गधे के बच्चे……तुम्हें इतना भी नहीं पता की कहाँ किस तरह से बात करनी चाहिए….

 

बच्चा आश्चर्य से अपने पिता के गुस्साए चेहरे को देखता है…..उसे समझ में नहीं आता है की आखिर उसने क्या गलती कर दी….

 

वह सुबकते हुए कहता है…..पापा आप ही ने तो कहा था की हमेशा सच बोलना चाहिए….

 

 

ऐसा अक्सर होता है……….. पहले तो हम अपने बच्चों को चोरी नहीं करनी चाहिए, कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए, गरीबों की मदद करनी चाहिए – ऐसी आदर्श बातें सिखलाते हैं और फिर जब हमें जरुरत पड़ती है तो हम उन्हें इन सारी बातों को ताक पर रखकर उन्हें अपना आदेश मानने के लिये कहते हैं. उनकी समझ में नहीं आता है की सही क्या है – वो बातें जो उन्होंने बचपन में किताबों में पढ़ी थी या फिर वो, जो उन्हें अब करने के लिये कहा जा रहा है….

 

 

ये सच है की हमें अपने बच्चों को राम और गाँधी की कहानियाँ सुनानी चाहिए…..लेकिन बदलते वक्त के साथ हमें उन्हें दुनियादारी की बातें भी बतानी चाहिए. उन्हें बताना चाहिए की …बेटा…आज के समय में पुरुषोत्तम राम के चरित्र को अपनाकर नहीं जिया जा सकता है…हमें कोई भी निर्णय किताबों में लिखी बातों के आधार पर नहीं बल्कि…… हालात, जरुरत, और अपनी क्षमता के आधार पर लेनी चाहिए……कोई भी सच हमेशा सच और कोई भी झूठ हमेशा झूठ नहीं होता है…बल्कि ये परिस्थितियों पर निर्भर करता है…..      

 

 

पेश है………एक आदर्श पिता द्वारा अपने बेटे के मासूम जिज्ञासा को शांत करने की एक कोशिश……..

 

 

बेटा – पापा, क्या हमें हमेशा सच बोलना चाहिए….?

 

पापा – हाँ बेटा…सत्य की हमेशा जीत होती है………हो सकता है की झूठा व्यक्ति थोड़े समय के लिये हम पर हावी हो जाये, किन्तु अंततः सच सबों के सामने आ ही जाती है..

 

लेकिन

 

किसी की खुशी की लिये छोटा-मोटा झूठ बोलना गलत नहीं है…….किसी की जान बचाने के लिये झूठ बोलना गलत नहीं है…….किन्तु इसका मतलब ये नहीं है बेटा की अदालत में किसी अपराधी की जान बचाने के लिये झूठ बोल दो ………………………..                                           हमें सच बोलना है या झूठ ये निर्णय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हमें अपने विवेक से लेना चाहिए…

 

 

बेटा – क्या चोरी करना पाप है…?

 

पापा – हाँ बेटा……हमें चोरी नहीं करनी चाहिए……..हमें जिस चीज की भी जरुरत हो, वो अपने मेहनत से हासिल करना चाहिए…….मान लो….कोई तुम्हारे मेहनत से जमा किये हुए पैसे चुरा लेता है…..सोचो तुम्हें कितनी तकलीप होगी…तो हमें यही कोशिश करनी चाहिए की हमारी वजह से किसी को ऐसी तकलीप ना हो.

 

लेकिन

 

चोर के घर में चोरी करना पाप नहीं है…….आजादी से पहले हमारे देश के क्रांतिकारी अंग्रेजों का माल लूटकर गरीबों में बाँट देते थे – इसे हम चोरी नहीं कह सकते……..भगवन श्रीकृष्ण भी बचपन में चोरी किया करते थे….लेकिन ये पाप नहीं था क्यूंकि इससे लोगों को खुशी मिलती थी…

 

 

बेटा – क्या किसी को धोखा देना पाप है…?

 

पापा – बिलकुल…..जो हमपर विश्वास करते हैं …..हमें उनसे छल नहीं करना चाहिए…..अपने फायदे के लिये किसी को धोखा देना बहुत ही गलत बात है…….जरुरत पड़ने पर हमें अपना नुकसान कर के भी सामने वाले का भरोसा टूटने से बचाना चाहिए.

 

लेकिन

 

धोखेबाज के साथ धोखा करने में कोई बुराई नहीं है. अगर कोई सरकारी कर्मचारी हमसे रिश्वत की मांग करता है….तो एंटी-करप्प्सन वालो की मदद से उसे उसे रंगे हाथों पकड़वाना,…..कोई धोखा नहीं है……….भगवन राम ने भी अत्याचारी बाली का वध धोखे से किया था – लेकिन इसे छल की श्रेणी में नहीं रखा गया….

 

 

बेटा – क्या हमें असहायों की मदद करनी चाहिए…?

 

पापा – बिलकुल करनी चाहिए…….हमें अपनी क्षमता के अनुसार हमेशा निर्बलों की मदद करनी चाहिए…

 

लेकिन

 

मान लो तुम किसी रास्ते से जा रहे हो….अचानक तुम देखते हो की चार लोग मिलकर एक आदमी को बुरी तरह से पीट रहे हैं….तुममें इतनी ताकत है की तुम इन चारों का मुकाबला अकेले कर सकते हो…..

तो क्या तुम्हें उन चारों की पिटाई करके उस अकेले आदमी को वहाँ से भागने का मौका दे देना चाहिए – बिलकुल नहीं,,,,,,तुम्हें नहीं मालूम की सिचुवेसन क्या है…….हो सकता है की वो आदमी कहीं चोरी करके या किसी का खून करके भाग रहा हो और भीड़ ने उसे पकड़ लिया हो…

तो बेटा…..बिना पूरा मामला जाने…..कभी किसी दूसरे के फटे में टांग नहीं घुसेडना चाहिए….

 

 

बेटा – पापा….क्या हमें अहिंसा के सिधान्तों पर चलना चाहिए…?

 

पापा – हाँ बेटा….लड़ाई-झगडे से आज तक किसी का फायदा नहीं हुआ है……महाभारत के युद्ध ने लाखों बेगुनाहों की जान ले ली थी….अगर कोई हमें चार बातें बोल भी दे तो हमें उसे नजरंदाज कर देना चाहिए..भले हि वो हमसे कमजोर हो…….

 

लेकिन

 

अगर कोई तुम पर या तुम्हारे परिवार की इज्ज़त पर अंगुली उठाये, तो उसकी आँखे निकाल लेनी चाहिए. कोई तुम्हारे सम्मान को ठेस पहुंचाए, तो तुम्हें चुप नहीं बैठना चाहिए.                                  हमें अपने चारों ओर एक दायरा बना लेना चाहिए…..अगर कोई इस सीमा को पार करे तो हमें, उसे मुँह-तोड़ जवाब देना चाहिए……..चुप रहना अच्छी बात है…..लेकिन अगर तुम हमेशा चुप ही रहे तो लोग तुम्हारी शराफत और तुम्हारी अच्छाई को तुम्हारी कमजोरी समझने लगेंगे…

 

 

 

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