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खाया-पिया कुछ नहीं……..गिलास तोडा बारह-आना
एक बार मुल्ला नसीरुद्दीन साहब ट्रेन से सफर कर रहे थे (वैसे तो उस समय ट्रेनें नहीं हुआ करती थी, लेकिन किस्सों में ऐसा जी जिक्र मिलता है). वे ऊपर की बर्थ पर सो रहे थे. उसी बोगी में उनके बर्थ के निचे दो नमूने भी बैठे थे. एक के मुँह में पान भरा था तो दूसरे का शरीर ऐसा जैसे किसी खेत में खड़ा अकेला गन्ना खुद को जमीन पे टिकाये रखने के लिये हवा से संघर्ष कर रहा हो.
उनमे से एक ने कहा – अम्मां यार.. एक बात बतलाओ……..क्या ये चेन खींचने से सचमुच ट्रेन रुक जाती है.
दूसरे ने कहा – सुना तो ऐसा ही है…. चचा जान……..
पहला – किसी झगडालू महिला की तरह हवा में हाथ नचाते हुए….. हमारा ठेंगा यकीन करे ऐसी बकवास पर….ऐसा कहते हुए उसने मुँह में भरा हुआ ढेर सारा पान का पिक सीट के निचे थूक दिया.
दूसरा – चचा….वो कहते हैं न….हाथ कंगन को आरसी क्या…..पढ़े – लिखे को फारसी क्या….क्यों न चेन खींचकर देखी जाये……दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा.
पहला – ठीक कहते हो मियां……लेकिन ये देखो ये क्या लिखा है……बिना वजह चेन खींचने पर १००० रूपये का जुरमाना….
दूसरा – हाँ…लिखा तो है….लेकिन भला उन्हें कैसे पता चलेगा की चेन हमने खींची है……और अगर मान लिया जाये की उन्हें पता चल भी जाता है तो मेरे पास २०० रुपये हैं ……..अरे चचा…..आपके पास भी तो १२०० रुपये थे न…..
पहला – अपने मुँह को ट्रेन की छत की तरफ उठाता है…..ताकि मुँह में भरा पान उसकी दाढ़ी का रंग न बदल दे…….और कहता है…………. ला-हौल-विला-कुव्वत……..अम्मां……मैं अपने पैसे मुफ्त में क्यों गवाऊं……….
तभी उसकी नजर ऊपर सो रहे मुल्ला साहब पर पड़ती है…..उसकी आँखे चमक उठती है.
ऐ….. जामुन की औलाद सुन………….हम चेन भी खींचेंगे और पकडे जाने पर जुरमाना भी नहीं देंगे.
दूसरा – चचा……आपका दिमाग तो सही है……क्या बकवास किये जा रहे हो……क्या ट्रेन वाले तुम्हारे ससुर के जान-पहचान वाले हैं…..
पहला – चुप कर काफ़िर…….और मेरी बात सुन….
वो देख ऊपर वो बुड्ढा सो रहा है. पकडे जाने पर हम बोल देंगे की चेन उसने खींची है………हम दो हैं और वो बुड्ढा अकेला…….सभी हमारी बात पर ही विश्वास करेंगे……
दूसरा – वाह चचा….. मान गए….
(इधर मुल्ला साहब बड़े आराम से आँखे बंद करके उनकी सारी बातें सुन रहे थे.)
दोनों मिलकर चेन खिंच देते हैं.
ट्रेन रुक जाती है.
थोड़ी देर में कुछ सिपाही आते हैं और पूछते हैं – चेन किसने खींची….
वो दोनों, मुल्ला साहब की तरफ इशारा कर देते हैं, जो ट्रेन रुकने पर उठकर बैठ गए थे….
सिपाही – चचा…….क्या चेन आपने खींची है ?
मौलवी साहब – हाँ बेटा…..मैंने ही खींची है…
ये सुनकर वो दोनों व्यक्ति भौचक्के रह जाते हैं…..आश्चर्य से वो दोनों एक-दूसरे का चेहरा ऐसे देखते हैं जैसे एक्जाम में कोई स्टूडेंट हाथ में थामे क्वेस्चन-पेपर को देखता है.
सिपाही (मौलवी साहब से पूछता है) – क्यों खींची थी…?
मौलवी साहब – बेटा इन दोनों ने मिलकर मेरे पैसे छीन लिये हैं.
वो दोनों आदमी मौलवी साहब की बात सुनकर अपना सर खुजाने लगते हैं…..और चिल्ला कर बोलते हैं….नहीं ये झूठ बोल रहा है…..हमने कोई पैसे नहीं लिये हैं….
मौलवी साहब (सिपाही से) – बेटा….तुम इनकी तलाशी लो……तुम्हें इस पान की दुकान के पास १२०० रुपये मिलेंगे और इस गन्ने के खेत के पास २०० रुपये….
सिपाही उनकी तलाशी लेता है….और रुपये मिल जाते हैं…..
वो दोनों चिल्लाते रह जाते हैं की ये पैसे उनके हैं,,,लेकिन सिपाही सारे रुपये मौलवी साहब को दे देता है और उन दोनों को पकड़कर जाने लगता है……
तभी पान वाले नमूने की आवाज आती है……
अम्मां…..ये तो वही बात हुई……की खाया-पिया कुछ नहीं……..गिलास तोडा बारह-आना…….
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